IND vs AUS: टॉस का हारना फाइनल को नहीं हारा, सीधे नतीजों पर ध्यान केंद्रित करें

IND vs AUS Toss Time: अहमदाबाद में इस विश्व कप में अब तक कुल चार मैच खेले गए हैं, और इस मैदान पर टॉस ने मौजूदा टूर्नामेंट में कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई है। दो मैचों में, जहां टॉस जीतने वाली टीम ने जीत हासिल की, वहीं दो मौकों पर टॉस जीतने वाली टीमों को हार का सामना करना पड़ा है।

इस विशेष रिपोर्ट में आपको यह जानकर खुशी होगी कि आपकी टीम ने इस मैदान पर पिछले मैचों में जो भूमिका निभाई है, उसे एक नए स्तर पर ले जा रही है।

विश्व कप 2023 के फाइनल में आज IND vs AUS का मुकाबला होगा। इस मैच के लिए पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रेमियों की उत्सुकता बनी रहेगी। भारत ने 1983 और 2011 में दो बार विश्व कप जीता है, जबकि ऑस्ट्रेलिया ने 1987, 1999, 2003, 2007 और 2015 में पांच बार विश्व चैम्पियन बना चुका है। इस प्रेरणादायक मुकाबले में, टॉस की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, और ऑस्ट्रेलियाई कप्तान का चयन इस मैच की दिशा को प्रभावित कर सकता है।

हालांकि, अहमदाबाद में टॉस का क्या रिकॉर्ड रहा है और विश्व कप के पिछले 12 संस्करणों में टॉस ने कैसी भूमिका निभाई है, यह सभी तथ्य मैच की रोमांचक दास्तान को और भी रोचक बना सकते हैं।

यह विश्व कप का 13वां संस्करण है। इस टूर्नामेंट में अब तक कुल 47 मैच खेले गए हैं, जबकि अहमदाबाद में कुल चार मैच हो चुके हैं। इस मैदान पर टॉस ने मौजूदा टूर्नामेंट में कोई विशेष भूमिका नहीं निभाई है। दो मैचों में जहां टॉस जीतने वाली टीम ने जीत हासिल की, वहीं दो मौकों पर टॉस जीतने वाली टीमों को हार का सामना करना पड़ा है।

टीमें अहमदाबाद में लक्ष्य का पीछा करने को प्राथमिकता देती हैं, क्योंकि इस मैदान पर हुए चार मैचों में से तीन मैचों में कप्तानों ने टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी का विकल्प चुना है। इसमें से दो (टॉम लाथम और रोहित शर्मा) ने सफलता का आनंद लिया है, जबकि जोस बटलर ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले फील्डिंग करने का फैसला किया।

अहमदाबाद में बल्लेबाजी करने वाली एकमात्र टीम अफगानिस्तान थी, और यह उस मैच में दक्षिण अफ्रीका से पांच विकेट से हार गई थी।

अहमदाबाद में वनडे क्रिकेट के इतिहास की आँकड़ों से जाएं, तो टॉस जीतने वाली टीम ने 30 मैचों में से 17 मैच जीते हैं। इस स्थान पर टीमें ने 16 बार टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का चयन किया है, और उनमें से नौ मैच जीते हैं, जबकि टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने वाली टीमों ने 14 मैचों में से आठ मैच जीते हैं।

IND vs AUS दोनों टीमों के कप्तान टॉस के साथ अधिक सफल नहीं रहे हैं। जहां रोहित शर्मा ने पांच टॉस जीते हैं और उतने ही हारे हैं, वहीं पैट कमिंस ने 10 मैचों में से केवल चार मैच जीते हैं।

भारत ने टूर्नामेंट के पिछले तीन मैचों में टॉस जीते हैं और रोहित ने हर एक मौके पर पहले बल्लेबाजी करने का विकल्प चुना है। दिलचस्प है कि ऑस्ट्रेलिया की दोनों हारें (भारत और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ) उनके कप्तान पैट कमिंस के टॉस जीतने के बाद हुईं हैं।

ओस का प्रभाव दोहरा होता है। पहला, यह गेंद को पकड़ना मुश्किल बना सकता है, जिससे स्पिनर्स को कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, तेज गेंदबाजों को भी स्लओर वन फेंकने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ सकता है। दूसरा, इससे पिच पर गेंद का मूवमेंट नहीं होता और बल्ले पर अच्छा आता है। इसके बाद, बल्लेबाजी करने वाली टीम के लिए चीजें आसान हो जाती हैं।

इसका अर्थ है कि बड़े मैचों में पहले बल्लेबाजी करना और स्कोरबोर्ड पर दबाव डालना बेहतर हो सकता है। ऐतिहासिक रूप से, इसकी पुष्टि भी है। पिछले 12 विश्व कप में से, पहले बल्लेबाजी करने वाली टीमें ने सात बार खिताब जीता हैं, जबकि बाद में बल्लेबाजी करने वाली टीमें ने पांच बार खिताब अपने नाम किया है।

विश्व कप फाइनल में पांच बार ऐसा हुआ है जब कप्तानों ने टॉस जीतकर चेज करने का निर्णय लिया है। ऑस्ट्रेलिया ने 1975 में, इंग्लैंड ने 1979 में, वेस्टइंडीज ने 1983 में, श्रीलंका ने 1996 में, और भारत ने 2003 में टॉस जीतकर पहले गेंदबाजी करने का निर्णय लिया था। हालांकि, सिर्फ 1996 में श्रीलंका ही ऐसी टीम रही जिसका यह निर्णय सही साबित हुआ था।

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बाकी चार मौकों पर टीमों को हार मिली थी। वहीं, विश्व कप फाइनल में सात मौकों पर ऐसा हुआ जब कप्तानों ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का निर्णय लिया है। ऑस्ट्रेलिया ने 1987 में, पाकिस्तान ने 1992 में, पाकिस्तान ने 1999 में, ऑस्ट्रेलिया ने 2007 में, श्रीलंका ने 2011 में, न्यूजीलैंड ने 2015 और 2019 में यह निर्णय लिया था। इसमें से तीन मौकों (1987, 1992, 2007) पर पहले बल्लेबाजी करने वाली टीम ने जीत हासिल की। बाकी मौकों पर टीमों को हार मिली।

हालांकि, चर्चा की जाए टॉस जीतने के बाद विश्व कप जीतने वाली टीमों की तो सिर्फ चार बार ऐसा हुआ है जब फाइनल में टॉस जीतने वाली टीम ने खिताब अपने नाम किया है। आठ बार टॉस हारने वाली टीम ने खिताब पर कब्जा जमाया है। भारत के लिए विश्व कप फाइनल में टॉस हारना शुभ रहा है। 1983 का फाइनल हो या 2011 का फाइनल, भारतीय कप्तान टॉस हारे थे, लेकिन ट्रॉफी जीतकर इतिहास रच दिया था।

1983 में जहां टॉस हारकर भारत ने पहले बल्लेबाजी की थी, वहीं 2011 में भारत ने टॉस हारकर चेज किया था। 2003 विश्व कप के फाइनल में सौरव गांगुली ने टॉस जीता था और चेज करने का फैसला किया था। ऑस्ट्रेलिया ने वह मैच और ट्रॉफी अपने नाम की थी। इस रिकॉर्ड को देखकर भारतीय फैंस मना रहे होंगे कि रोहित टॉस हार जाएं।

फाइनल से पहले ऑस्ट्रेलियाई कप्तान पैट कमिंस ने टॉस के संबंध में कहा कि दिन के दौरान बल्लेबाजी पर विचार करना अच्छा होगा, खासकर जब रोशनी थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन वह स्वीकार करते हैं कि दूसरी पारी में बल्लेबाजी करना मुश्किल हो सकता है। ओस का प्रभाव मैच के आखिरी मोमें आ सकता है, लेकिन जब यह होता है, तो गेंद स्किड करना शुरू हो जाती है, जिससे स्थिति कुशलता से बाहर हो सकती है।

एक ही टीम की कप्तान रोहित शर्मा ने इस संदर्भ में ओस के संभावित प्रभावों को कम उजागर किया। रोहित ने यह कहते हुए कहा, “हालात बदल रहे हैं और तापमान में थोड़ी गिरावट आ रही है। मुझे नहीं पता कि ओस कितनी होगी, क्योंकि पाकिस्तान के खिलाफ मैच से पहले जब हमने अभ्यास किया तो काफी ओस थी, लेकिन मैच के दौरान ओस नहीं थी। हालांकि, रोहित ने इसे भी माना कि नतीजे पर टॉस का असर नहीं होगा।

उन्होंने कहा, “वानखेड़े स्टेडियम में कुछ दिन पहले जब हम ट्रेनिंग कर रहे थे तब भी काफी ओस थी, मैच के दिन ज्यादा ओस नहीं थी इसलिए मैं कहता रहता हूं कि टॉस मायने नहीं रखता।”

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