Kundalpur Bade Baba Chalisa | कुंडलपुर बड़े बाबा चालीसा

Kundalpur Bade Baba Chalisa कुंडलपुर बड़े बाबा चालीसा के साथ जय बोलिए। सभी दुखों, कष्टों, व्याधियों, रोगों, जलनों से छुटकारा पाने के लिए भगवान के नाम का जाप करना चाहिए। Kundalpur Wale Bade Baba Ka Chalisa बड़े बाबा चालीसा का जाप करने से मानसिक शांति और शरीर को शांति मिलती है।

मध्य प्रदेश के श्री बड़े बाबा दिगंबर जैन मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु बाबा के चरणों के दर्शन करते हैं। वह प्रसिद्ध स्थान कुंडलपुर बड़े बाबा के नाम से जाना जाता है। पुन्नार्थी अपनी इच्छा से कुण्डलपुर बड़े बाबा के चरणों की शरण लेता है, और बड़े बाबा के चालीसा का पाठ कर बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करते है।

Kundalpur Bade Baba Chalisa
कुण्डलपुर बड़े बाबा

कुंडलपुर बड़े बाबा क्षेत्र परिचय

जैन धर्म का इतिहास बहुत पुराना है। हालाँकि, आपको बता दें कि ऋषभ देव को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है। जो भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। मध्य प्रदेश भारत के मध्य भाग में स्थित है और प्राकृतिक सुंदरता और समृद्धि से भरपूर है।

Kundalpur Bade Baba
Kundalpur Bade Baba

कुंडलपुर बड़े बाबा सिद्ध क्षेत्र दमोह जिले की पाहटेरा तहसील में स्थित है। अर्धचंद्राकार पर्वत पर बसा यह क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है। इसी स्थान पर करीब 1500 साल से 15 फीट लंबे बड़े बाबा पद्मासन पर बैठे हैं। जिन्हें 1008 अधिनाथ भगवान भी कहा जाता है।

Kundalpur Bade Baba Chalisa हिन्दी में

बड़े बाबा का सुन रे नामा, पूर्ण हो गए बिगड़े कामा।
जिसमें नाम जपा प्रभु तेरा, उठा वहां से कष्ट का डेरा।

बड़े बाबा का जो ध्यान लगावे, रोग दु:ख से मुक्ति पावे।
जीवन नैया फंसी मझधार, तुम ही प्रभु लगाबो पार।

आया प्रभु तुम्हारे द्वार, अब मेरा कर दो उद्धार ।
राग द्वेष से किया किनारा, काम क्रोध बाबा से हारा।

सत्य अहिंसा को अपनाया, सच्चे सुख का मार्ग दिखाया।
बड़े बाबा का अतिशय भारी, जिसको जाने सब नर नारी।

भूत प्रेत तुम से घबराये, शंख डंकनी पास न आवे।
बिन पग चले सुनह बिन काना, सुमरे प्राणी प्रभु का नामा।

जिस पर कृपा प्रभु की होई, ताको दुर्लभ काम न कोई।
अतिशय हुआ गिरी पर भारी, जब श्रावक के ठोकर मारी।

एक श्रावक ठोकर खाता था, जब पर्वत से आता जाता था।
व्यापर करने को नित्य प्रति जाता, पर्वत था ठोकर खाता।

संयम और संतोष का धारक, श्रावक था जिन धर्म का पालक।
ठोकर का ध्यान दिन में रहता, फिर भी पत्थर से भिड़ जाता।

क्यों न ठोकर का अंत करूँ, पथिकों का दुःख दूर करूँ।
ले कुदाल पर्वत पर आया, पर पत्थर को खोद न पाया।

खोदत खोदत वह गया हार, पर पत्थर का न पाया पार।
अगले दिन आने का प्रण कर लौट गया वह अपने घर पर।

स्वप्न में सुनी देवी की वाणी, मत बन रे श्रावक अज्ञानी।
जिसको तू ठोकर समझा है, ठोकर नहीं प्रभु का उत्तर है।

मूरत खोद निकालू मैं जाकर, तुम आ जाना गाड़ी लेकर।
विराजमान गाड़ी पर कर दूंगा, और ग्राम तक पहुंचा दूंगा।

ध्यान ह्रदय में इतना रखना, अतिशय को पीछे मत लखना।
देव जातिखन श्रावक जागा, गाड़ी ले पर्वत को भागा।

चहुँ दिश छाई छटा सुहानी, फ़ैल रही चंदा की चांदनी।
देव दुंदभि बजा रहे थे, पुष्प चहुँ दिश बरसा रहे थे।

देवों ने प्रतिमा काड़ी और और प्रभु की महिमा भाखी।
प्रभु मूरत गाड़ी पर राखी, श्रावक ने तब गाड़ी हांकी।

पवन गति से गाड़ी चली, प्रभु मूरत तनिक न हाली।
श्रावक अचरज में डूब गया, प्रभु दर्शन को पलट गया।

तत्क्षण उसका अंत हुआ, भवसागर से बेड़ा पार हुआ।
जैन समाज पहुंचा पर्वत पर, मंदिर बनवाया शुभ दिन लखकर।

सूरत है मन हरने वाली, पद्मासन है मूरत काली।
मन इच्छा को पूरी करते, खाली झोली को प्रभु भरते।

बड़े बाबा बाधा को हरते, बिगड़े काम को पूरा करते।
मनकामेश्वर नाम तिहारा, लगे ह्रदय को प्यारा प्यारा।

प्रभु महिमा दिल्ली तक पहुंची, दिल्लीपति ने दिल में सोची।
क्यों न मूरत को नष्ट करू, झूठे अतिशय को दूर कर।

दिल्लीपति था बड़ा अभिमानी, मूरत तोड़ने की दिल में ठानी।
लशकर ले पर्वत पर आया, जैन समाज बहुत घबराया।

छेनी लगा हथौड़ी घाला, मधु बर्रो ने हमला बोला।
नख से बहे दूध की धारा, जाको मिले न पारम पारा।

अतिशय देख सेना घबराई, मधु बर्रो ने धूम मचाई।
रहम रहम करके चिल्लाया, सारी जनता ने हर्ष मनाया।

सेनापति ने शीश झुकाया, सीधा दिल्ली को तब आया।
अहंकार सब चूर हो गया, प्रभु अतिशय में स्वयं खो गया।

क्षत्रसाल ने पांव पखारे, जय बाबा करके जैकारे।
करी याचना अपनी जीत की, मंदिर के जीर्णोद्धार करन की।

भर उत्साह में हमला बोला, बड़े बाबा का जयकारा बोला।
शत्रु को फिर धूल चटाई, आ मंदिर में ध्वजा फहराई।

मंदिर का जीर्णोद्धार किया, दान दक्षिणा भरपूर दिया।
जो प्रभु चरणों में शीश झुकाये, दुःख संताप से मुक्ति पाये।

सोरठा
चालीसा चालीस दिन पढ़े, कुण्डल गिरी में आप।
वंश चले और यश मिले, सुख सम्पत्ति धन पाय।
करें आरती दीप से, प्रभु चरणों में ध्यान लगाय।
भक्ति भाव पूजन करें, इच्छा मन फल पाय।

कुंडलपुर बड़े बाबा चालीसा पाठ करने का फायदे

किसी भी भगवान का नाम जपते समय लाभ के बारे में नहीं सोचना चाहिए। फिर भी, कुंडलपुर बड़े बाबा चालीसा पाठ से मन और शरीर की शांति, परिवार की शांति, काम में मन की शांति और वित्तीय सुधार होता है।

बड़े बाबा कौन थे?

कुंडलपुर बड़े बाबा सिद्ध क्षेत्र दमोह जिले की पाहटेरा तहसील में स्थित है। अर्धचंद्राकार पर्वत पर बसा यह क्षेत्र अंतिम श्रुत केवली श्रीधर केवली की मोक्ष स्थली है। इसी स्थान पर करीब 1500 साल से 15 फीट लंबे बड़े बाबा पद्मासन पर बैठे हैं। जिन्हें 1008 अधिनाथ भगवान भी कहा जाता है।

कुंडलपुर बड़े बाबा कितना साल पुराना है

मध्य प्रदेश के कुंडलपुर में बड़ा बाबा का स्थान, जहां बड़े बाबा स्थित हैं, लगभग 1500 साल पुराना है।

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